तुम हो तो
यह घर लगता है
वरना इसमें
डर लगता है
वार नहीं करते हैं वंदन
और वही हवा अब
करती है साँय-साँय
सन्नाटा रहता पसरा
नहीं गाता अब कोई बिन बताए
तुम हो तो
यह घर लगता है
और जब ढ़लती है शाम
पास आते हैं साये
कोई नहीं लगाता दीपक
जो उन्हें दूर भगाए
तुम हो तो
यह घर लगता है
और स्वाद भी फ़ीका ही
लगता है रोटी का
पेट तो फ़िर भी भर ही जाता है
मन को कोइ कैसे समझाए
तुम हो तो
यह घर लगता है
और कभी थक कर
जल्दी आँख भी लग जाए
तो कोई नहीं
उठा कर बोलता थोड़े गुस्से से
कि तुम कैसे सो गए
मुझे बिन बताए
तुम हो तो
यह घर लगता है
वरना इसमें
डर लगता है
~ निशांत
:) bhai vry nice..
ReplyDeleteThank you :)
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