Saturday 1 April 2017

चादर

वो जो सिलवटें तुम छोड़ गई थीं
उस नरम चादर पे
वो मैंने वैसी सी ही रहने दी हैं
ये चादर अब मुझे समतल पसंद आती भी नहीं

और रात जब आती है
तो उसके अँधेरे में
मैं सिमट सा जाता हूँ
उन सिलवटों के पास ही

~ निशांत

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