वो जो सिलवटें तुम छोड़ गई थीं उस नरम चादर पे वो मैंने वैसी सी ही रहने दी हैं ये चादर अब मुझे समतल पसंद आती भी नहीं
और रात जब आती है तो उसके अँधेरे में मैं सिमट सा जाता हूँ उन सिलवटों के पास ही
~ निशांत
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